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छोटी मोटी चिहुलिया, अरे पाता झपरी गेल हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

निर्वासन के बाद सीता जंगल में विलाप कर रही हैं। वनदेवी जंगल से निकलकर उन्हें सांत्वना देते हुए कहती है कि मैं सब कुछ सँभाल लूँगी, तुम्ळें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। निश्चित सय पर पुत्र की उत्पत्ति होती है। सीता नाई को बुलवाकर लोचन पहुँचाने के लिए उसे अयोध्या भेजती हैं। वे कही हैं-‘पुत्रोत्पत्ति की खबर दशरथ, कौशल्या और लक्ष्मण को देना, लेकिन किसी प्रकार राम इसे जानने न पायें।’ नाई अयोध्या पहुँचता है। उसे सबसे पहले राम से ही भेंट हो जाती है और पूछने पर वह शुभसंवाद देता है।
यह गीत बहुत ही कारुणिक है तथा भाषा का प्रयोग भी बहुत ही सुंदर हुआ है।

छोटी मोटी चिहुलिया<ref>ढाक का पेड़</ref>, अरे पाता<ref>पत्ता</ref> झपरी<ref>झबरना; फैलना; पल्लवित होना</ref> गेल हे।
ललना, ओहि तर<ref>उसी के नीचे</ref> खाड़ी<ref>खड़ी</ref> सीता, मनहिं बेदिल भेल हे॥1॥
ललना, कौने मोरा छारतै<ref>छाजन करेगा</ref> मड़ैया, सरे बिपति गँमायब हे।
ललना, कौने मोर करत परतीपाल<ref>प्रतिपाल</ref>, त दिबस गँमायब हे॥2॥
बन से बाहर भेली बनसपती<ref>वनदेवी</ref>, हुनि<ref>उन्होंने</ref> सीता समुझाबै हे।
सीता हमहिं सखी सहेलरिनी<ref>सहेलिन; सहेली</ref>, बिपति गँमायब हे।
ललना, नारद मुनि मड़इ<ref>झोपड़ी</ref> छारतै, बिपति गँमायब हे॥3॥
भोर भेल पोह फाटल<ref>पौ फटना</ref>, होरिला जलम लेल हे।
ललना, बाजे लागल आनंद बधाबा, गवन लागल सोहर हे॥4॥
हँकरह<ref>पुकारो</ref> गाँम के नौआ, अरे बेगि चलि आबह हे।
नौआ, झट दै सगुन उठाबै, अजोधेआ पहुँचाबै हे॥5॥
पहिली लोचन राजा दसरथ, तब कय<ref>उसके बाद</ref> कोसिलेआ रानी हे।
ललना, दोसरी लोचन देरा लछुमन, राम नहीं जानै हे॥6॥
छोटी मोटी चनन केरा पात, झपरी गेला हे।
ललना, ओहितर रामजी दतन<ref>दातून, दतवन</ref> करे, सबेरे लहाबै<ref>स्नान करते थे</ref> छेलन हे॥7॥
कहाँ केरा तहुँ नौआ, कौनी<ref>कोन</ref> लाल पठाओल हे।
ललना, केरा घर भेलै नंदलाल, लोचन लेके आबै हे॥8॥
तोहरिओ<ref>तुम्हारी</ref> दुलहिन सीता रानी, बनवास दै गेल हे।
ललना, हुनके<ref>उन्हें ही</ref> भेल नंदलाल, लोचन लिये आयल हे॥9॥

शब्दार्थ
<references/>