छोटी मोटी नरियर गाछ, भुइयाँ लोटै हे डार / अंगिका लोकगीत
बरात आकर दरवाजे पर लगी। बेटी ने पिता से पूछा- ‘इतने लोगों को तुम किस प्रकार सँभालोगे? सभी अच्छे-अच्छे कपड़े पहने हुए हैं। इन लोगों में तुम अपने जमाता को कैसे पहचानोगे?’ पिता ने उत्तर दिया- ‘मैं सबको सँभाल लूँगा और मेरा जमाता पंडित है, उसे मैं उसकी आकृति, रहन-सहन और पुस्तकों आदि से पहचान लूँगा।’
छोटी मोटी नरियर गाछ, भुइयाँ लोटै हे डार।
ओहि तर कवन सिंह बाबा, पलँगा हे ओछाय<ref>बिछाकर</ref>॥1॥
कत<ref>कितने</ref> नीन<ref>नींद में</ref> सूतल हो बाबा, मुँह रे छपाय<ref>छिपाकर</ref>।
हथियहिं घोड़बा हो बाबा, लागलै दुआर॥2॥
हथियहिं घोड़बा गे बेटी, लागै दे दुआर।
हमहिं सम्हारबै<ref>सँभालूँगा</ref> गे बेटी, सोजन<ref>स्वजन</ref> बरियात॥3॥
सभै<ref>सभी</ref> बरियतिया हो चाचा, लाली लाली पाग।
कैसे कै चिन्हभे<ref>पहचानिएगा</ref> हो बाबा, अपनों हे जमाय॥4॥
हमरो जमैया गे बेटी, पढ़ल पंडितबा।
बामें हाथे कागज गे बेटी, दाहिने मसियान<ref>कलम</ref>।
वैसे के चिन्हबै<ref>पहचानूँगा</ref> गे बेटी, अपनो जमाय॥5॥