भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोटी सी गौरैया / जया पाठक श्रीनिवासन
Kavita Kosh से
छोटी सी गौरैया
इक तिनका
इक दाना ले कर
चलती आँगन
बाहर भीतर
सांझ सबेरे
दिन दुपहरिया
छोटी सी गौरैया
काली आँखें
सरस पनीली
कोमल पाँखें
जान हठीली
चीं चीं चीं चीं
नहीं थकती है
रुक चल ढुल-मुल
शोर मचैया
छोटी सी गौरैया
छोटी धनिया
गोधन के संग
ललचाई सी
भाग दौड़ कर
लाती दाने
एक कटोरी
और प्याली में
पानी भर-भर
करती दिन भर
मान मनैय्या
छोटी सी गौरैया