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छोटे-छोटे घर हैं अपने छोटे से आहाते हैं / नवीन जोशी
Kavita Kosh से
छोटे छोटे घर हैं अपने छोटे से आहाते हैं।
छोटी छोटी बरसातें हैं छोटे छोटे छाते हैं।
ऊँचे ऊँचे उन महलों की बातें कर के क्या हासिल,
छोटी छोटी आँखों को फिर ख़्वाब बहुत भरमाते हैं।
वक़्त सही हो आने का और जाने का हो वक़्त सही,
जब तक हम इक बोझ नहीं हैं तब तक रिश्ते-नाते हैं।
साथ गुरू का ऐसा जैसे दर्पन में अपना चेहरा,
उनसे मिलने जाते हैं तो ख़ुद से मिल के आते हैं।
जंग सभी लड़ते हैं जग में फ़र्क़ मगर है इतना सा,
कुछ खाते हैं पीठ पे गोली कुछ सीने पर खाते हैं।
इतने पंछी पकड़े फिर भी ये ना समझ पाया सय्याद,
पिंजरे में जो गूँगे थे वो पेड़ पे कैसे गाते हैं।
जो बेटे से प्यार करें वो घर में ले आते हैं बहू,
जो बेटी से प्यार करें वो घर में बेटी लाते हैं।