आज पहली मई है और मैं उन मज़दूरों को
याद कर रहा हूँ, जिनके बनाए घर में मैं
अब तक रह रहा हूँ ।
याद करूँगा मैं उन किसानों को जो अन्न को
हीरे-जवाहरात की तरह बचाते हैं ।
कैसे भूल पाऊँगा अपने हलवाहे सरजू काका को
जिनकी पीठ पर बैठ कर जाता था स्कूल,
जिनके दम से लहलहाती थीं फ़सलें,
अनाज से भर जाता था खलिहान ।
जिन्हें हम अहँकार में छोटे लोग कहते है
वे हमारी ज़िन्दगी के बड़े काम करते हैं
क्या मैं उस मोची दादा को भूल पाऊँगा,
जिन्होंने पहली बार मेरे पाँव के नाप के
जूते बनाए थे, जिन्हें पहनकर मैं हवा में
उड़ने लगा था ।
क्या मुझे उन अब्बू दरज़ी की याद नही आएगी
जो बिना माप लिए सिल देते थे मेरी कमीज़ !
धन्यवाद ऐसे लोगो के लिए छोटा शब्द है,
उन्हें पहली मई को याद करना महज
औपचारिकता
वे रोज़ याद किए जानेवाले महान लोग हैं,
जिनके बिना अधूरा है हमारे जीवन का
इतिहास ।