छोटे शहर की लड़कियाँ / लाल्टू
कितना बोलती हैं
मौका मिलते ही
फव्वारों सी फूटती हैं
घर-बाहर की
कितनी उलझनें
कहानियाँ सुनाती हैं
फिर भी नहीं बोल पातीं
मन की बातें
छोटे शहर की लड़कियाँ
भूचाल हैं
सपनों में
लावा गर्म बहता
गहरी सुरंगों वाला आस्मान है
जिसमें से झाँक झाँक
टिमटिमाते तारे
कुछ कह जाते हैं
मुस्कराती हैं
तो रंग बिरंगी साड़ियाँ कमीज़ें
सिमट आती हैं
होंठों तक
रोती हैं
तो बीच कमरे खड़े खड़े
जाने किन कोनों में दुबक जाती हैं
जहाँ उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता
एक दिन
क्या करुँ
आप ही बतलाइए
क्या करुँ
कहती कहती
उठ पड़ेंगी
मुट्ठियाँ भींच लेंगी
बरस पड़ेंगी कमज़ोर मर्दों पर
कभी नहीं हटेंगी
फिर सड़कों पर
छोटे शहर की लड़कियाँ
भागेंगी, सरपट दौड़ेंगी
सबको शर्म में डुबोकर
खिलखिलाकर हँसेंगी
एक दिन पौ सी फटेंगी
छोटे शहर की लड़कियाँ।