भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोट्टू का पाणी / सुन्दर कटारिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साल्लां के बणे औड़ नियम तोड़ दिये
छोटू के पाणी नै दो घर जोड़ दिये।
वे दो घर जो एक दूजे के बैरी होगे थे
बीज पड़ोसी जिनमें नफरत का बोगे थे।
भाई भाई एक दूसरे नै नही सुहाया करते
किसे कै जीम्मण जाते तो नजर चुराया करते।
मा जायी भाण एक दूसरी नै गाल़ सुणाती
एक कै किमै खाण का आता तो दूसरी बैठ कै लखात्ती।
पाणी लेण जात्ती तो भी न्यारी न्यारी
और लेती मजे। चुप रहती भाण बिचारी।
बाल़क बड़े होगे थे उन तै डरया करती
सो आप्पस मै बात ना करया करती।
दरअसल घर भी गल़ी मै आगै पीछै थे
अगले हमेशा पिछल्यां नै खींचै थे।
गाल़ के कुत्यां नै पीछे नै बाड़ देते
कोये चिट्ठी पत्री आती तो ऊहनै फाड़ देते।
कोये मंगता आता तो पाछले द्वार।
अर कोये लाडू देण आता तो वे किरायेदार
पाछै रहण की खूब सजा देते
कबाड़ी, सब्जी आल़े सब नै आगे तै ए भजा देते।
चुगली चाटियां का दौर चढ़ रहया था
सबके मन मै चोर बड़ रहया था।
टूटे रिस्त्यां का खूब फायदा ठाया रिस्तेदारां नै
नफरत ठोक कै भरदी यारे प्यारयां नै।
गल़ी मै पीछे नै अन्धेरा घुप रहै था
पर घर का मुखिया छोटू चुप रह था।
पर या बात आगल्यां तै ना पड़ी समझाणी
च्यार दिन ना आया उनके घर पाणी।
बहु बाल़क अपणे मायके डिगरगे
डांगर ढोर पिसाये मरगे।
बिना पाणी के अगले मरण नै होये
आखिर मै आकै छोटू धोरै रोये।
वो बड़ा था उसनै अपणा फर्ज निभाया
कदे भी लड़ाई मै लड़ता नही पाया।
बुराई नै मारण की सोचै था
हमेशा सुधारण की सौचै था।
उनके रोणे पै छोटू नै भी रोणा आया
सैड़ दे नै उनकै पाणी प्होंचाया।
पाणी के चक्कर मै बतलाण लागगे
एक दूसरे के घर आण जाण लागगे।
छोटू का पाणी जुलम करग्या
सारी दुसमनाई खतम करग्या।
माणस प्यार ताहीं नही तरसैगा
जो छोटू का पाणी बादल़ बण बरसैगा।
कदे भी कित्तै भी सूखा नही रहैगा
इन्सान स्वार्थ का भूखा नही रहैगा।