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छोट खिखिरकेँ मोट नाङिडि / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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जोतल गेल एक गाड़ीमे भेंड़ा महिषा संग,
साप छुछुन्नरि चढ़ल ताहि पर जमा रहल अछि रंग।
पहिया छोट पैघ तँ छैके, कान्ही छै बेमेल,
जूआ पर बैसौलक सब मिलि बहलमान बकलेल।
रासि पकड़ने छै क्यौ तेसर, गाड़ी छैक उलार,
सौंसे सड़क कटारि, ताहि पर कतहु चलैछ पलार।
प्रजातन्त्रतँ धूर्त्तताक बनि गेल पूर्ण पर्याय,
चकबिदोड़ लागय नहि ककरा, ताकय सब चकुआय।
बीहरि एक ताहिमे पैसल दूनू बेराबेरी,
डँसत एक दोसरकेँ, मरबामे लगतै की देरी?
धर्म धुरन्धर सब मिलि टेकल गोवर्द्धन गिरि-भार,
सत्रह छिद्रवला नौका चढ़ि करता यमुना पार।
यदुवंशीकुल भूषण अपने जतय विराजथि कंस,
ततय काक पूजित, उत्पीड़ित रहय अहर्निश कंस,
जकरा जानल छैक न देशक गौरवमय इतिहास,
से मर्मज्ञ बनल अपने पुरखाक करय उपहास।
जकर आँखि पर चश्मे दोसर देशक छै चढ़ि गेल,
चौपड़ि आइ बिछाय करै अछि से सब शकुनी-खेल।
योजन-योजन भरिक योजना अँटकल रहल-अधरमे,
लक्ष्मी बन्धक पड़ली शासक-प्रशासकक घर-घरमे।
मुट्ठी भरि वंचकहिक हाथक पाँचो आङुर घीमे
सबकेँ डारि अपने छै भेटल, के अछि घाटि कथीमे?
मुदा मूल पर जकर नजरि छै से सब भेल अछूत
भ्रष्टाचार-पंक पैसल गधकिच्चनि करथि सपूत।
दूध-दही-छाल्हीक भँड़ारक बनल बिलाड़ प्रभारी
पोखरि सभक करै अछि चौकस बगुला पहरेदारी।
उचित बात जे बजाय सम्प्रति सैह खसै अछि खत्ता
ताशक खेल एहन चलइछ जे पंजा पर अछि सत्ता।
नहला पर दहलाक खेत तँ अतिशय भेल पुरान,
‘टवैन्टीएट’क एहि खेल मे होय गुलाम प्रधान।
तकरापर रक्षाक भार हो जे चलबाबय गोली,
भीतरसँ खखड़ी बाहरसँ टासँ केहन छै बोली।
आहारे संचय करबालै जाल लगाबय मकड़ा,
पुनि ओझराय मरय ताहीमे छैक प्रसिद्धे फकड़ा।
शत-सहस्त्र की लक्ष-कोटिमे आब न चलय हिसाब,
प्रजातन्त्रमे अरब-खरब पर अनुखन पड़य दबाव।
खिखिर छोट अछि तेँ की, देखू नाङड़ि छै कत मोट,
के जनैछ जे कखन करत के कतय महाविस्फोट।