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छोड़कर नीले गगन को आ रही है चाँदनी / राम नाथ बेख़बर

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छोड़कर नीले गगन को आ रही है चाँदनी
खेत पोखर के दिलों को भा रही है चाँदनी।

हम शरद की रात की ही बात करते रह गए
क़ह्र फिर आकर दिलों पर ढ़ा रही है चाँदनी।

इक झरोखे से निकल सिहरन भरी इस रात में
सेज पर चुपके से बिछकर जा रही है चाँदनी।

शोख़ चंचल चुलबुली है हर अदा में बाँकपन
पत्र टहनी कास वन पर छा रही है चाँदनी।

बेख़बर थे हम जगत में यार तेरे प्यार से
हाँ, मग़र कुछ आज कल बहका रही है चाँदनी।