भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ / अहमद महफूज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ
अपना तो सब के हाथों ख़सारा बहुत हुआ

क्या बे-सबब किसी से कहीं ऊबते हैं लोग
बावर करो के ज़िक्र तुम्हारा बहुत हुआ

बैठे रहे के तेज़ बहुत थी हवा-ए-शौक़
पस्त-ए-हवस का गरचे इरादा बहुत हुआ

आख़िर को उठ गए थे जो इक बात कह के हम
सुनते हैं फिर उसी का इआदा बहुत हुआ

मिलने दिया न उस से हमें जिस ख़याल ने
सोचा तो उस ख़याल से सदमा बहुत हुआ

अच्छा तो अब सफ़र हो किसी और सम्त में
ये रोज़ ओ शब का जागना सोना बहुत हुआ