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छोड़ उन को न जाने किधर मैं गया / अभिषेक कुमार अम्बर
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छोड़ उन को न जाने किधर मैं गया
दूर तक था न कुछ जिस डगर मैं गया।
अपने हाथों से उस ने जो मुझ को छुआ
देख तुझ से ज़ियादा निखर मैं गया।
सोच कर बस यही अब मिलेगा ख़ुदा
हर गली और बस्ती नगर मैं गया।
देख कर मेरे हालात देगी वो रो
मिलने वापस अगर माँ से घर मैं गया।
शेर दो चार' अम्बर' सही क्या कहे
सबकी नज़रों में देखो अखर मैं गया।