छोड़ जगत झूठा सम्मान ।
चार दिनों का तू मेहमान।।
प्रभु तो उर में करे निवास
ढूंढ़ रहा बाहर नादान।।
नश्वर तन से ममता व्यर्थ
झूठा क्यों करता अभिमान।।
बैठा है जिस तरु की डाल
काट रहा उसको अनजान।।
साथ नहीं जाती है देह
करता जिस पर बड़ा गुमान।।
अब तो मेरा तेरा छोड़
कर ले जीवन का कल्यान।।
भूलभुलैया सा संसार
भटक भटक कर देता जान।।