भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोड़ द बलमुआ जमींदारी परथा / रसूल
Kavita Kosh से
छोड़ द बलमुआ जमींदारी परथा ।
सइंया बोअ ना कपास, हम चलाइब चरखा ।
हम कातेब सूत, तू चलइह करचा ।
हम नारा, नुरी भरब ,तू चलइह करघा ।
संईया बोअ...
कहत रसूल, सईंया जइह मत भूल ।
हम खादीए पहिन के रहब बड़का ।
सईंया बोअ...