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छोड़ परदेश आ जाइए / बाबा बैद्यनाथ झा

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आप साजन न तरसाइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥

मैं विरहिणी यहाँ रो रही,
धैर्य जो था बचा खो रही।
दिन गुजरता सदा आस में,
रात में भी नहीं सो रही।

दर्द बढ़ता, न तड़पाइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥

मास भादो सताता मुझे,
मेघ गर्जन डराता मुझे।
बैठ एकाकिनी सेज पर,
प्रेम पागल रुलाता मुझे।

अब दया आप दिखलाइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥

वेदना यह बताऊँ किसे,
टीस दिल की दिखाऊँ किसे?
ध्यान देती नहीं भगवती,
बोलिए अब रिझाऊँ किसे?

आप दौड़े चले आइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥