आप साजन न तरसाइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥
मैं विरहिणी यहाँ रो रही,
धैर्य जो था बचा खो रही।
दिन गुजरता सदा आस में,
रात में भी नहीं सो रही।
दर्द बढ़ता, न तड़पाइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥
मास भादो सताता मुझे,
मेघ गर्जन डराता मुझे।
बैठ एकाकिनी सेज पर,
प्रेम पागल रुलाता मुझे।
अब दया आप दिखलाइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥
वेदना यह बताऊँ किसे,
टीस दिल की दिखाऊँ किसे?
ध्यान देती नहीं भगवती,
बोलिए अब रिझाऊँ किसे?
आप दौड़े चले आइए।
छोड़ परदेश आ जाइए॥