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छोरी रो सुपनो / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
रात रै पछै
भोर री बेळा
मिंदर री मूरत मांय
निजर आवै
उण छोरी नै
आपरो सुपनो।
बा छोरी रात नै सुपना नीं देखै
बा दिन-भर सुपनै मांय
सुपनो देखती रैवै हरेक छिण।
सूरज नै अरग देवती थकी
स्यात सूरज नै सूरज नीं समझै
म्हारै खातर, म्हारै अमर प्रेम रो
सुपनो है सूरज।
बा नीं जाणै
आपरै सुपनै रै संसार नै
नीं देख्यो अर नीं मिळी
नीं सीधी बंतळ हुई है प्रेम सूं
रात रा सुपना नीं लेवै बा छोरी
दिन रै सुपनै मांय आपरै प्रेम रै
सुपनै माथै भरोसो करै।