भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोरी : अेक / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
पैली बार बणाई
रोटी नीं बणी
मा दाईं गोळ
मा झिड़की
बळयो बाळण जोगो
थांरो डोळ
परनै बळ रसोई सूं
कमकसू डफोळ!