भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोरे-छोरियो / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये अच्‍छी बात नईं है
कि हिन्‍दू लड़की से मुस्लिम लड़का या मुस्लिम लड़की से हिन्‍दू लड़का
या जाट लड़की से दलित लड़का या यादव लड़के से ब्राह्मण लड़की प्‍यार करे

शादी से पहले प्‍यार करना ही क्‍यों
जब कि मालूम है कि शादी मां-बाप की मरजी से होनी है
बिरादरी में होनी है

प्‍यार मां-बाप से करो, भाई-बहनों से करो, रिश्‍तेदारों से करो,
बिरादरी के लोगों से करो
फिर भी प्‍यार की प्‍यास नहीं बुझे तो मानवता से करो, प्रभु से करो
और लड़के-लड़की को ही आपस में प्‍यार करना है
तो फिर, तो फिर...
रिश्‍ते के भाई-बहनों, मौसा-मौसी, मामा-मामियों
चाचा-चाचियों, भतीजों-भानजियों से करो
ताकि मामला घर में रफा-दफा हो जाए

दिल बाहरवाले से लगा ही रख है तो
हद-से-हद एक-दूसरे को प्रेमपत्र लिख लो
साथ जीने-मरने की कसमें खा लो
जब शादी का बखत आए तो इसे
गुड्डे-गुडिया का खेल समझ भूल जाओ

छोरे-छोरियों, दिल को तो हमेशा तुम अपना दुश्‍मन ही समझना
और दिमाग को रखना दुरूस्‍त
मां-बाप की इज्‍जत करना और प्रभु का करना स्‍मरण
यह मान के चलना कि वह जो करेगा ठीक करेगा
और फिर हम भी तो हैं ही!