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छ्न्द प्रसंग नहीं हैं / देवेन्द्र शर्मा `इन्द्र'

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हम जीवन के महाकाव्य हैं
केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।
         कंकड़-पत्थर की धरती है
         अपने तो पाँवों के नीचे
         हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
         स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।
         तुमको रास नहीं आ पायी
         क्यों अजातशत्रुता हमारी
         छिप-छिपकर जो करते रहते
         शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।
         कहते-कहते हमें मसीहा
         तुम लटका देते सलीब पर
         हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
         कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।
         तुम सामुहिक बहिष्कार की
         मित्र! भले योजना बनाओ
         जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
         नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।