भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छ्म-छ्म करती गाती शाम / देवमणि पांडेय
Kavita Kosh से
छ्म छ्म करती गाती शाम
चाँद से मिलने निकली शाम।
उड़ती फिरती है फूलों में
रंग-बिरंगी तितली शाम।
आँखों में सौ रंग भरे
आज की निखरी-निखरी शाम।
यादों के साहिल पर आकर
पल दो पल को उतरी शाम।
ओढ के सिंदूरी आँचल
हँसती है शर्मीली शाम।
दिन का परदा उतर गया
बड़ी अकेली लगती शाम।
अलग-अलग हैं सबके ख़्वाब
सबकी अपनी-अपनी शाम।