भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छ: मिहने मैं / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छ: मिहने मैं। छ: मिहने मैं तेरा बेरा पाटया। चिट्ठी मिली फौज़ की थी।
चिट्ठी मैं न्यु लिख राखी। तेरी छुट्टी बीस रोह्ज की थी।
सभ कुणबे कै चाव चढ्या। मेरी उस दिन रात मौज की थी।
चौद्दस पुरणमासी पड्वा। तेरी पक्की बाट दौज की थी।
चौद्दस पुरणमासी पड्वा। तेरी पक्की बाट दौज की थी।
हां चंदा बणकै। हो चंदा बणकै। बरस्या कोन्या क्यूं बादऴां की आड लेग्या।
करकै घाल तडपती छोडी। ज्यान क्योंना काढ लेग्या।
हो परदेसी। गैल मेरे भी, बांध क्योंना हाड लेग्या।
करकै घाल तडपती छोडी। ज्यान क्योंना काढ लेग्या।