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जंगख़ोर स्कूल मास्टर / बैर्तोल्त ब्रेष्त / सुरेश सलिल
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एक था स्कूल मास्टर
नाम था उसका हुबर !
जंग का जनून हरदम
छाया रहता था उसपर ।
फ़्रीडरिख़ महान का ज़िक्र आता
उसकी बातों में
तो चिनगारियाँ चटखने लगतीं
उसकी आँखों में ।
मगर राष्ट्रपति पीक का जादू
कत्तई नहीं चलता उस पर ।
उसके साथ आई
श्मिटन नाम की एक धोबन ।
मैल से, गन्दगी से
थी उसकी अनबन ।
मास्टर हुबर को दिया
उसने कसकर धक्का
सीधे टब में जाकर गिरा
वह भचक्का ।
कपड़ों की ही तरह
फींच-फाँच कर
गत बना गई उसकी
श्मिटन नाम की वो धोबन ।
1950 : ’बच्चों के लिए लिखे गए गीत’ से
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल