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जंगल-जंगल डोलूँ मैं डोलूँ / रविन्द्र जैन

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जंगल-जंगल डोलूँ मैं डोलूँ
हिरन-हिरन मेरा नाम
कौन तू कौन कहाँ से है आया
क्या है यहाँ तेरा काम
भाग ले भाग, नहीं तो
शेर को बुलवा लूँगा
भेड़िये को बुलवा के
खाल तेरी नुचवा लूँगा
आदमी का बच्चा हह
जंगल\-जंगल डोलूँ मैं डोलूँ
हिरन\-हिरन मेरा नाम

कौन आवत है
बाल हैं काले काले
कुछ भी नहीं जंगल की तुमको अदा रे
आओ मेरे पास, मिटे नहीं आस
देखो गात गात
अपने घर एक आई आदमी की जात
मदद को आना
अरे किसने दिखलाया इसे जंगल का रस्ता
भले ओ घर में रहना, नहीं है इतना सस्ता
आदमी का बच्चा

काला भालू खाये आलू रे
ओ काला भालू खाये आलू रे
सीधा-सादा लागे गुमसुम रहे
बड़ा चालू रे
काला भालू खाये आलू रे

ओ भालू मामा, सुनो
क्या है बे
क्या है हंगामा कहो कहो
ओ नशे में हूँ मैं मुझको ओ बच्चो
अभी न बुलाना रे
और नशे के आलम में
उठना बैठना चलना फिरना
डाख़्टर की तरफ़ से सख़्त मना है
क्यूँकि मैंने महुआ पिया है
मेरी बस ये ख़ता है
कहीं मुश्किल है आना जाना रे

दूर हटो
दूर हटो ऐ दुनिया वालो
बंगले ताल हमारा है

भोले भाले प्रानी रे
तेरी पल भर की ज़िंदगानी रे
ये शेर तुझे खा जाएगा
हो जायेगी ख़त्म कहानी रे

ऐ आदमी का बच्चा
राज करने आया है
बन्दूक चलाने आया है
मार-मार के जंगल से निकाल दुँगा
हाथ हिला के
चल

ओ रे बनवासियो
मेरे प्यारो मेरे लाडलो
पथ भूले पथिक को क्षमा कर दो
घर आये अतिथि पर दया कर लो
ओ ओ रे बनवासियो
मेरे प्यारो मेरे लाडलो

शक्तिशाली हो उसे दो शक्ति का परिचय
जो तुम्हारी शक्ति को ललकारने आये
प्यार का लाया उजाला जो अंधेरे में
क्यूँ उसी निर्दोष को तुम मारने आये
उसके जीवन की ख़ातिर दुआ कर दो
उसको हंसते हँसाते विदा कर दो

ओ ओ रे बनवासियो
मेरे प्यारो मेरे लाडलो