जंगल के हर मुहाने पर / संतलाल करुण
यदि एक भेड़िया मारने पर
लाखों का इनाम घोषित हो
तब भी भेड़ें कोई भेड़िया नहीं मार सकतीं
बकरी, ख़रगोश, हिरन
सब के दाँत गोंठिल हैं
ज़्यादा-से-ज़्यादा
वे चर सकते हैं
दूब और मुलायम पत्तियाँ
या चाभ सकते हैं
फेंकी हुई घास
अधिक-से-अधिक भर सकते हैं चौकड़ी
अपने मेमनों के साथ
बबरों-गब्बरों के लिए
खाई खोदने. गाड़ा बैठने, जागने की
फ़ितरत उनमें कहाँ
उन्हें तो हर रात
मैथुन और नींद चाहिए।
आहार खोजते हुए
आहार हो जाता है
उनकी भीड़ का कुछ हिस्सा हर रोज़
लेकिन वे नहीं गिरा सकते
एक भी बाघ, एक भी चीता
अगर सोता हुआ मिल जाए तब भी
बल्कि उसके दुम के नीचे की जगह
चाट-चाटकर उसे जगा देते हैं
और जब वह उठ बैठता है
तो उसके आगे
निपोरते हैं दाँत भीड़ के ही सियार
हिलाते हैं दुम भीड़ के ही कुत्ते
जिससे रँगे हाथ पकड़ा जाकर भी
वह डरता नहीं
मूँछें फुलाकर गुर्राता है
कि मेरी असलियत जानने के लिए
कुतियों का इस्तेमाल क्यों किया गया।
इसके लिए जल्द-से-जल्द
गिद्धराज को पकड़ा जाए
फोड़ दी जाएँ उसकी आँखें
काट दिए जाएँ
उसके पंख, पंजे और जननांग।
गिद्धों का काम
अब तीन बंदरों से लिया जाए
जिनमें से एक की आँखों पर
दूसरे के कानों पर
तीसरे के मुँह पर
उनके अपने ही हाथों का सख्त पहरा हो।
पेड़ से गिरे हुए लकड़बग्घों की
हर बार मरहम-पट्टी करती हैं लोमड़ियाँ
ऑक्सीजन देते हैं अजगर
जल्दी भूल जाते हैं गधे
उनका काला कारनामा
पेड़ पर फिर चढ़ा देते हैं उन्हें
चूहों, चींटियों, गोरुओं के भींड़-हाथ
और कानों तक फटे खूँख़ार मुँह
पेड़ की ऊँचाई से
अपनी आसमानी भाषा बोलते हैं
कान लगाकर सुनती हैं
जंगल की जमातें
हर बार वही आप्तवचन –-
कि जंगल में घास की कमी नहीं है
कि इस साल अच्छी बारिश के आसार हैं
कि अब हरियाली में
दो-से-तीन गुना तक की बढ़ोत्तरी होगी
कि जंगल का हरापन
तबाह करनेवाली नीलगायों को
मुख्यधारा में लाया जा रहा है
कि सीमा-पार से आनेवाले गैंडों से
सख्ती से निपटा जाएगा
की कहीं से चिंता की कोई बात नहीं।
भेड़ियों के प्राण उनके दाँतों में होते हैं
उनके ख़ून लगे दाँतों में
और उनकी ताक़त भेड़ों के ख़ून में
मोटे तौर पर एक भेड़िया
इतना चालाक होता है
कि एक करोड़ भेड़ों को मात दे सकता है
यदि किसी तरह फँसकर
एक-आध शिकार होता भी है
तो ज़मीन पर
रक्तबीज टपकाए बिना नहीं मरता
जिससे भेड़ों की करोड़ों-करोड़ की संख्या
उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती
जो कोई आगे बढ़ता है
वह उनके जबड़ों-बीच शहीद होता है।
भेड़-चाल में महज़ दिनौंधी होती है
रतजगा बिल्कुल नहीं होता
भय और फुटमत के कारण
जंगल की इससे बड़ी विडम्बना
और क्या हो सकती है
कि हर हाल में मारी जाती हैं भेड़ें
और उनके भाई-बंद
चरते हुए, सोते-सुस्ताते हुए
खोह-खड्ड में छिपे हुए
या सारे जंगल के सामने बाग़ी करार करके
और आँसू बहाया जाता है घड़ियालों द्वारा
शोक-संवेदना प्रकट करते हैं तेंदुए
श्रद्धा के फूल चढ़ाता है बड़कन्ना सिंह
जबकि अधिसंख्य भेड़-भीड़
ठगी आँखों से
हर रोज़ देखती-सुनती है
जंगल के हर मुहाने पर
धूर्तों का उठता, लहराता, स्थापित
वही भेड़िया–पताका, नारा और हाथी-दाँत।