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जंगल में अकेले / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
जो लोग जँगल की ओर चले गए
वे न तो वैरागी थे
न ही थी उनकी उम्र इतनी
कि वे अध्यात्म की प्यास
बुझाने के लिए कहीं निकल सकें
वे अभी ठीक से
जवान भी नहीं हुए थे
ठीक से देखा भी नहीं था
जीवन को
अभी तो उनकी उम्र फूलों से
नदियों से, खेतों से, फ़सलों से
प्यार करने की थी
अभी तो उन्हें करना था
अपनी पसन्द की लड़की से
प्रेम निवेदन
जो लोग जँगल की ओर चले गए
उनके गुस्से को नहीं समझा गया
उनकी कठोरता के पीछे
छिपे कोमल हृदय की कोई
परवाह नहीं की गई
उनके पवित्र सपनों को कुचला गया
नियमों के नाम पर
लालफ़ीताशाही में लिपटी व्यवस्था के नाम पर
उनकी बातों को बकवास कहकर
हवा में उड़ा दिया गया
वे जँगल में आज भी सोचते हैं
अपने सपने के समाज के बारे में