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जंगल में आग लपट है झर-झर / ठाकुरप्रसाद सिंह
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जंगल में आग लपट है झर-झर
राजा की डब-डब है पोखर
जल जाऊँ
डूब मरूँ
कैसे यह बिरह तरूँ
दिन-दिन भर
रात-रात
बजता है मादल