भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंगल में आजादी का दिन / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जंगल में भी खुशियाँ छाई,
आजादी का दिन आया।
हंसी-ख़ुशी और बड़े चाव से,
सबने वन को खूब सजाया।

बन्दर मामा ने सुन्दर सा,
ऊंचा मंच बनाया।
कोयल, मोर, पपीहे ने मिल,
राष्ट्र-गान था गाया।

वनराजा ने ली सलामी,
झंडा भी फहराया।
आजादी हित मर मिटने का,
सबको पाठ पढ़ाया

कदम ताल से ताल मिलाकर,
बजे बैंड शहनाई।
ढ़ोलक बोली ताक धिना-धिन,
नाच उठा लोमड़ भाई।

हाथी-भालू और गिलहरी,
खुश-खुश दिखते सारे।
देख की खातिर मिट जाएंगें,
गूंज रहे थे नारे।

खील, बताषे बंटी मिठाईयाँ
सबने जी भर खाई।
एक बनेंगें नेक बनेंगें,
शपथ हमें है भाई।