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जंगल / शिवकुटी लाल वर्मा
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एक खूँख़ार तेन्दुआ मोटर की बू-वास पा गया
एक विशाल बरगद बुलडोजर से मात खा गया
झाड़ियों ने पत्तियों की ओढ़नी उतार फेंकी
माधवी और विष्णुकान्ता की लताओं ने
स्कर्ट पहन चकर-मकर ताका
फूलों के गहने पहने गमलों से लव किया
साँपों ने मिटटी की हण्डिया स्वीकारी
शाही उद्यानों के भी हो गए पौ-बारह
केले के गांछों ने फ़ोन पर बातें कीं
दलदल भरी धरती ने कुंजों से टाटा की
असभ्यता से पीड़ित वह पहले कभी था जंगल
अहो भाग्य ! दोस्त बना शहर, हुआ जंगल में मंगल