भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंगळी / अशोक परिहार 'उदय'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हूं जंगळाती
आप जंगळी ई कैय सको
बसूं-खसूं जंगळां में
थूं देख म्हारी हथाळयां
कित्तो है कंवळोपण
म्हैं पण घडूं
काठ रा काठिया-कडिय़ा
जणां ई देख
हथळयां में ऊग्या है
रूंख री ठोड़ आयठण।