भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंग जारी है / अमित कुमार मल्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जंग जारी है

पसीनो और हाथो के घट्टों से
  बुझाता हूँ पेट की आग
भूख और रोटी की
जंग जारी है

शरीर को चाहिए रोटी
रोटी के लिए बिकता है शरीर
अस्मत और मजबूरी की
जंग जारी है

कलियों के साथ
उगते है काँटे भी
उन्हे खिलने के लिए
परिवेश से जंग जारी है