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जंग लड़नी है तो बाहर निकलो / डी. एम. मिश्र

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जंग लड़नी है तो बाहर निकलो
अब ज़रूरी है सड़क पर निकलो

कौन है रास्ता जो रोकेगा
सारे बंधन को तोड़कर निकलो

क्या पता रास्ते में काँटे हों
मेरे हमदम न बेख़बर निकलो

बाज़ भी होंगे आसमानों में
झुंड में मेरे कबूतर निकलो

उसकी ताक़त से मत परीशाँ हो
छोड़कर ख़ौफ़ झूमकर निकलो

दूर तक फैला हुआ सहरा है
भर के आँखों में समन्दर निकलो