Last modified on 24 जुलाई 2013, at 20:57

जंज़ीर-व-तौक या रसन-व-दार कुछ तो हो / अनवर जलालपुरी

जंज़ीर-व-तौक या रसन-व-दार कुछ तो हो
इस ज़िन्दगी की क़ैद का मेयार कुछ तो हो

यह क्या कि जंग भी न हुई सर झुका लिया
मैदान –ए-करज़ार में तक़रार कुछ तो हो

मैं सहल रास्तों का मुसाफ़िर न बन सका
मेरा सफ़र वही है जो दुशवार कुछ तो हो

ऐसा भी क्या कि कोई फरिश्तों से जा मिले
इन्सान है वही जो गुनहगार कुछ तो हो

मक़तल सजे कि बज़्म सजे या सतून-ए-दार
इस शहर जाँ में गर्मी-बाज़ार कुछ तो हो