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जंजैहली घाटी / नवनीत शर्मा
Kavita Kosh से
शिमला के अकड़ाए हुए
देवदार से भला
क्या मुकाबला थुनाग की रई का
पर इतना सीधापन भी क्या
कि कुक्कर् की पहली विसल
से भी पहले गल जाएँ
बगस्याड़ और जंजैहली के राजमाश।
कितने ही छोटे-छोटे रायगढ़ों के आगे
तन कर रहता है मालरोड ।
इधर, अभी लोकगीत ही गाता है
या खामोश रहता है भीतरी सिराज
इसीलिए बचा है शायद।
डर यही है
जिस दिन शिमला से
जुड़ जाएगी
जँजैहली घाटी
खत्म हो जाएगी।