जंतर-मंतर / जय छांछा
अभी मैं खड़ा हूँ
पार्लियामैंट स्ट्रीट और क्नॉट सकर्ल
और टालस्टाय मार्ग के संगम बिंदु पर
निहार रहा हूँ ऐतिहासिक बिंदुओं को
अर्थात् जंतर-मंतर को ।
एकाग्रता के साथ देखने पर
कहीं-कहीं आभास होता है मुझे
इतिहास मौन भाषा में बोल रहा है मेरे संग
अपनी गाथाएँ बता रहा है मुझे लगातार
हाँ, सच, कुछ कह रहा है मुझसे
वह अपना सब कुछ बता रहा है मुझे
और एक मैं हूँ कि व्यस्त सड़क के किनारे
मौन खड़े होकर देख रहा हूँ एकटक इसे ।
ठीक इसी समय याद कर रहा हूँ
भद्रकाली मंदिर के पूर्वी भाग को
लंदन के स्पीकर्स कॉर्नर
और वाशिंगटन डी०सी० के लाकयेते पार्क को ।
जंतर-मंतर में कुछ पूछने की ज़रूरत है ही नहीं
यहाँ पेड-पौधे बोलते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद
बयान आदि बता रहे होते हैं धमाधम
चहल-पहल में कहीं खोया हुआ
सदा भाषण सुनता रहता है जंतर-मंतर ।
इनका अध्ययन करने के बाद
पूछने की इच्छा हुई मुझे-
ओ जंतर-मंतर !
क्या तुम मंत्र की बूटी बनाकर
सभी को दे सकते हो ?
मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला