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जउनी गली जाऊँ / उमेश चौहान
Kavita Kosh से
जउनी गली जाऊँ, आगि बरसै मुलुक मां।
गंगा की धार, रावी, सतलुज की धार मां,
ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी कछार मां,
इरखा बढ़ी है, खूनु बरसै मुलुक मां॥
मनई का भारी होइगै, मनई कै देहिया,
लोग भे बनैले, बनु होइगै सारी दुनिया,
जुलुम की आंच द्याहैं झरसैं मुलुक मां॥
अल्ला, राम बिहंसैं रकतु बरसाए ते,
वाहे गुरू खुश होएं अरथी चढ़ाए ते,
दानवी क्रिया ते देव हरसैं मुलुक मां॥
पेमु गा बिलाय, सुखु गुलरी का फूलु भा,
धरमु, करमु सबु गुलरी का फूलु भा,
घर के घरौआ बिसु परसैं मुलुक मां॥