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जकड़ल छी / नारायण झा

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अपन देश आ अपन गाम
पूर्वहि पड़ल स्वच्छताक छाह
एखनहुँ धरि छी हम जकड़ल
डेन पकड़ि जाइछ पकड़ल।

परंपरा आ मनगढ़ंत बात
डेग-डेग पर खीचय हाथ
विचार सदिखन राखि सुविचार
गढ़ैत रही नीक आचार।

स्वतंत्रताक दिन होयत तखन पवित्र
जखन आनोक नयना सँ देखब चित्र
नीकक सदिखन गमकय सुगंध
बेजायक पल-पल गन्हकय गंध।

देखाबी दम मेहनति क' के
फुलाबी छाती अपनहि मेहनति सँ
मेहनतक फल होइछ मीठ
छीनल संपदा सदिखन तीत।

हे शिक्षार्थी, हे नवतुरिया
खोलू चोपेतल गेयानक पुड़िया
दुनियाँ अछि लोक भाँति-भाँति सँ बनल
एखनहुँ ठाढ़ छी परतंत्रक पाँति मे अड़ल।