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जगदो द्यू / सुदामा प्रसाद 'प्रेमी'
Kavita Kosh से
जीवन की ईं उकळि-उंधरि पर
मिन ध्वळिने द्वी आंसू खारी
जोड़ि-सौंज्वड़ि मा हंसदा-ख्यलदा
मिन सदने यो मन कटम्वारी।
जौं भावों तैं लेकी छौ मिन
यो अपणो संसार रचायो
ओ सब पलभर मुं उड़ि गैने
मी ऊंतैं समेटि नि पायो।
अब त जीवन भार-सी ह्वाया
खिल्यूं फूल भी मुुरझाया
भाव नि छीं मन मूं कुछ
फिर भी जगदो द्यू-सी पाया।
यदि जगदो द्यू तुम चैल्या
बुझणा से पैले ही ऐयां
अगर बुझ्यूं ही तुम पैल्या
त राख उठै ल्ही जैंयां।