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जगमग दीप जलाएँ / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
आओ जगमग दीप जलाएँ
अपनेपन का भाव जगाएँ।
मन से मन का दीप जलाकर,
विश्वासों की डोर बढ़कार,
संस्कृति के पावन आलोक से,
सारा जग दमकाएँ।
आओ जगमग दीप जलाएँ
टूटे मन में स्नेह जगाकर,
मन के कड़वे भाव हटाकर।
दूर किसी उजड़ी कुटिया के,
आँगन को महकाएँ
आओ जगमग दीप जलाएँ।
बढ़े चहूँ दिश भाई चारा,
पावन हो हर ध्यये हमारा,
रूखे अंधियारे जीवन में,
नया सवेरा लाएँ।
आओ जगमग दीप जलाएँ