बड़ी अकड के मावस आई
जग भर में अंधियारी छाई
बोली तम का होगा यहाँ डेरा
कायम धरा पे साम्राज्य मेरा
शय की मेरे कोई मात नहीं है
चाँद की भी औकात नहीं है
लेकिन घमंड होता बुरा भाई
सबने मिल एक युक्ति सुझाई
भर मिटटी के दिए में तेल
जली बाती, खत्म तम का खेल
हुई उड़न छू निशा की काली
रौशनी झिलमिल छटा निराली
सुबक उठी फिर मावस काली
की दीपों ने जगमग दीवाली