भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जगह / कविता महाजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिसमें मृत्यु की भी इच्छा न बची हो
उस इंसान की तरह
कोरा कड़क कैनवस;
उस पर आकाश का एक रंगीन
अमूर्त निराकार टुकड़ा चिपकाना था...

आकाश की अभिलाषा मन में संजोते समय
ध्यान ही नहीं आया कि
आकाश के
अपनाने जितनी जगह
हमारे किसी भी घर में नहीं होती

मूल मराठी से अनुवाद : सरबजीत गर्चा