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जगाती देवता को / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
हम नहीं है देह
हम दो अरणियाँ हैं।
हमारे लिपटने से उठी है जो लपट
प्यार की ही ऋचा है वह
जगाती देवता को
जो हमारी धमनियों में सो रहा है !
(1981)