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जग की भूल गई सुध / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
सुधियों के दीन स्तम्भ अब तक सुदृढ़ आलम्बन देते।
मधुरिम तुम्हारे संस्मरणों को अब तक जीवन देते।
मौन पीड़ा से गागर भर छलके अश्रु रुदन देते।
मानस पर छा जाते तुम कपोलों को चुम्बन देते।
आने के पदचाप प्रिये! भावों को यों स्फुरण देते।
विरह-श्वास-निःश्वास मिटकर आशा-आकुंचन देते।
मिलन -वेला के मेले वो मन को आमन्त्रण देते।
जग की भूल गई सुध जब तुम मुझे आलिंगन देते।