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जग के जुग परतारि रहल अछि / कालीकान्त झा ‘बूच’
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जग के जुग परतारि रहल अछि "
नहि किछु आन एक अछि वादक
बात-विचार विशेष विवादक
गुण केँ गोंग बनाए शंखिनी
संख्याबाजी मारि रहल अछि
तोँ छह एक ह'म छी बेशी
हमरा लग नहि चलतह ठेशी
चपल चान केँ घेरि घनेरो
नच्छत्तर नेन्गीयारि रहल अछि
हंसक न्याय बगुलबा लेलक
माँछक माँछ पानि फरिछेलक
नेतृत्वक जंतर लटका क'
बिलड़ों आँखि गुरारि रहल अछि
बहुमत हमर जेबि पर आयब
लटकब माँथ किलीप लगायब
काठीसन कलमक काया केँ
लाठी आइ चेथारि रहल अछि
सहि सहि सिंह सने रहि जयबह
हमरा संगें मासुए खैबह
उजड़ल वन क विवश सिंहिनि केँ
गीदड़वा उरहारि रहल अछि