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जग में आकर इधर उधर देखा / ख़्वाजा मीर दर्द
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जग में आकर इधर उधर देखा|
तू ही आया नज़र जिधर देखा|
जान से हो गए बदन ख़ाली,
जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा|
नाला, फ़रियाद, आह और ज़ारी,
आप से हो सका सो कर देखा|
उन लबों ने की न मसीहाई,
हम ने सौ-सौ तरह से मर देखा|
ज़ोर आशिक़ मिज़ाज है कोई,
‘दर्द’ को क़िस्स:-ए- मुख्तसर देखा|