भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जग में मुरीद अपना बनाता किसे नहीं / प्राण शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जग में मुरीद अपना बनाता किसे नहीं
फ़नकार अपने फ़न से रिझाता किसे नहीं

घर में वो अपनी ज़िद्द से सताता किसे नहीं
ऐ दोस्त ज़िद्दी बच्चा रुलाता किसे नहीं

इतना भी भूला-भटका किसी को नहीं समझ
घर पहुँचने का रास्ता आता किसे नहीं

हमने सुनाई आपको तो क्या बुरा किया
हर शख़्स अपनी ख़ूबी सुनाता किसे नहीं

यूँ तो किसी को भूलना आसाँ नहीं मगर
एहसान फ़रामोश भुलाता किसे नहीं

ख़ुदगर्ज़ इतना है की ज़रूरत में दोस्तों
इंसान अपना दोस्त बनाता किसे नहीं

ए "प्राण" बच के रहना निगाहों से तुम उसकी
दुश्मन डगर से अपनी हटाता किसे नहीं