भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जग से नराला / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
चेहरा मइया के जग से निराला हे
दुनियाँ काला हे काला हे काला हे
धरती आसमान ई मइया से
साँझ आउ बिहान ई मइया से
चहूँओर मइया से उजाला हे
ई...
चाँद सितरा ई मइया से
बहार नजारा ई मइया से
चहूँओर मइया के बोलबाला हे
ई....