Last modified on 30 नवम्बर 2020, at 23:48

जटा न कंथा सिंगी न शंख / बहिणाबाई

जटा न कंथा सिंगी न शंख।
अलख मेक हमारा बाबू।
झोली न पत्र कान में मुद्रा।
गगन पर देख तारा॥
बाबा हमतो निरंजन वासी,
साधू संत योगी जान लो हम क्या जाने घरवासी॥
माता न पिता बंधु न भगिनी।
गव गोत बो सब न्यारा।
काया न माया रूप न रेखा।
उलटा पंथ हमारा बाबा।
धोती न पोथी जात न कुल।
सहजी-सहजी भेक पाया।
अनुभवी पत्रि सी सिद्ध की खादी।
उन नी ध्यान लगाया॥
बोध बाल पर बैठा भाई।
देखत हे तिन्ह लोक।
ऊर्ध्व नयन की उलटी पाती।
जहाँ प्रकाश आनंद कोटि॥
भाव भगत मांगत भिक्षा।
तेरा मोक्ष कीदर रहा दिखाई।
बहिनी कहे मैं दासी संतन की।
तेरे पर बलि जावे॥