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जटिल कुटिल मुस्कान / दिनेश कुमार शुक्ल
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डगमग डगती डगर
बिखरती बहर गीत की
जगर-मगर यह नगर
गैल सुनसान प्रीत की
मीत भये अनजान
भीत ढहती प्रतीति की
जाहिर सकल जहान
निठुरता निपट-जीत की
कल तक थे तुम साथ
बात लगती अतीत की
छोड़ गये हो हाथ
याद भर अब व्यतीत की
वीणा की कलतान
अब न मेरी उछंग में
मन्द्रमेघ के गान
अब न मेरी मृदंग में
गंगा की हलकोर
अब न जीवन - तरंग में
टूटी जीवन डोर
बधिक कातर कुरंग मैं
जटिल कुटिल मुस्कान
आज देखी अनीति की
डगमग डगती डगर
बिखरती बहर गीत की।