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जड़ें सु़नती हैं / नीलोत्पल

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वहां जहां मैं रुका हू़ं
सडके ख़त्म होती नहीं दिखती
वे गीली चमकदार आंखों-सी
तैरती हैं किसी मृत सपने की तरह

बसें बारिश की रफ़्तार के साथ
दौड़ती जा रही
चमकदार रोशनियां उनका पीछा करती हैं
अगले मोड तक

यहां कोई अचानक पार करता है
सदियों से रीते समु़द्र को
कोई उतरकर रख देता है सड़कों पर
अपने नंगे पैर
उनके गीले होते ही भर जाती है लहर
दिमाग में जंगलों में भींगी जड़ों की

मैं सड़क के बांयी तरफ़
बैंक की छत के नीचे
भींगने से बचता हु़आ
देखता हू़ं सारा दृश्य-अदृश्य

दृश्यों को शब्दों और रंगों की भरपू़र ज़रुरत है

पानी से लदे पेड़ों में
जिनमें शहद नहीं, मधु़मक्खियां नहीं
पंछी गीत नहीं गा रहे
फ़िर भी पेड़, पहाड़ पर
रखी धू़प की तरह चमकते हैं

ख़ाली आकाश विदा लिए पक्षियों के घोंसलों को
ढांकता है गीली पत्तियों से
रोशनी के अधखाए छिलकों से

ज़मीन में पिछले छोड़े हु़ए
कागजों, माचिस की जली तीलियों,
लकड़ी के बु़रादे, चींटियों के बु़रे दरों की
हल्की मद्धम आवाज़ें हैं
जड़ें सु़नती हैं इन्हें

नन्हे मेंढक जिन्हें नहीं मालू़म
उनकी उछाल दस्तक है मौसम की
वे घु़स जाते हैं घरों और खेतों में

जैसे हर दृश्य एक-दू़सरे में खोता
आंखे टकराती और विदा लेती हु़ई

इन सबके दरम्यान
मैं ख़ु़द से घबराता
दौड़ता हूं जीवन की तरफ़
बारिश मु़झे बचाती है
अपने पारदर्शी परदों से