भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जड़ें / अज्ञेय
Kavita Kosh से
पेड़ के तने में घाव करके
उसमें खपच्ची लगा गये हैं वे
कि बूँद बूँद
रिसता रहे घाव
उन्हें चाहिए लीसा।
और मेरी छाती के घाव में भी
लगी हैं खपच्चियाँ
नीचे बँधा है
उनका कसोरा।
पेड़ की, मगर,
जड़ें हैं गहरी
वह मिट्टी से रस खींचता है।
और मेरी जड़ों को पोषण की अपेक्षा है
उन्हीं से जिन्हें अपने कसोरे में
मेरा लहू चाहिए।