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जड़ों से अपनी कट के रह गया हूँ / राम नाथ बेख़बर

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जड़ों से अपनी कट के रह गया हूँ
मैं खुद में ही सिमट के रह गया हूँ।

भला कैसे भुला पाओगी मुझको
तेरे दिल से चिपट के रह गया हूँ।

नहीं कानों पे तेरे जूँ हैं रेंगे
मैं तेरा नाम रट के रह गया हूँ।

वही है अक्स फिर वैसी ही सूरत
हर इक दर्पण उलट के रह गया हूँ।

उधर आधी मेरी राधा हुई है
इधर आधा मैं घट के रह गया हूँ।

नहीं भूलूँगा तुझको बेख़बर मैं
तेरे ख्यालों से सट के रह गया हूँ।